ज़िंदगी अपनी तेज रफ्तार से चल रही थी, पर आज सालों बाद ये समय आया है कि दुनिया थम सी गई है। ये रुकी हुई रफ्तार भी अजीब सी बेचैनी लेकर आई है और जनाब जीवन की रफ्तार रुकी हुई है कोरोना वायरस से। 21 दिन का लॉकड़ाउन जहां इंसानों के लिए बेचैनी लेकर आया है वहीं प्रकृति के लिए एक नई दुनिया लाया है। पशु बिना डर के घूम रहे हैं। पक्षी भी अपनी रफ्तार से खुश हैं खुले आसमान में। हवा प्रदुषण मुक्त है, नदियों का पानी साफ़ सुथरा हो चला है।
अगर बेचैन है तो वो इंसान है, पर क्यूं ये मात्र एक कल्पना जैसा दिखाई देता है कि इंसान इस थमने के बावजूद व्यस्त ही दिखाई देता है? यह व्यस्तता समाज में सोशल मीडिया के प्रचलन का नतीजा है। आज के आधुनिक युग में सोशल मीडिया इंसान के लिए एक मात्र साधन रह गया है समय व्यतीत करने का और आज-कल बहुत प्रचलित है।
एक ज़माना था जब पूरा परिवार साथ बैठकर रामायण और महाभारत देखता था पर आधुनिक समाज की विडंबना देखो, आज लोग अलग–अलग कोने में बैठकर समय व्यतीत करते हैं। कोरोना के चलते 21 दिनों के लॉकडाउन से पूरा देश बंद है क्योंकि सरकार का आदेश है कि अपने घरों में रहो और सुरक्षित रहो।
कॉलेज जाने वाले बच्चे परेशान है, काम पर जाने वाले पुरुष व महिलाएं परेशान है। बच्चे घरवालों से परेशान है घरवाले बच्चों से परेशान है और टिक- टोक ने तो नारी शक्ति के प्रति बड़ा अजीब रवैया अपनाया है। जितनी भी टिक- टोक विडियोज आती है बीवी के लिए उनमें ज़्यादातर ये ही दिखाया गया है कि हमारा पुरुष समाज में अपनी पत्नियों से कितना तंग है । अगर लॉकडॉउन से कोई खुश है तो वो स्कूल जाने वाले बच्चे क्योंकि उन्हें छुट्टियां मिल गईं हैं।
ये कैसी बेचैनी है कि सब साथ रहकर भी साथ नहीं रहना चाहते। एक दूसरे से भागते हैं, पर ये भी क्या बात हुई कि जब हम बाहर की दुनिया में लोगो से मिलते हैं तो बुहत खुश रहते हैं और घर में अपने परिवार से तंग हो गए हैं!
परिवार के साथ बैठने की बजाए हम सोशल मीडिया जैसी नकली दुनिया में अपना समय व्यतीत करते हैं। वहां हम तंग नहीं होते हैं। अपने बीवी और बच्चों के साथ हम बोर होते हैं ऐसा क्यूं है? ये कैसी बेचैनी है हमारे समाज की?
क्वारांटाइन ने सिखाया तो ये की हम इतने अनमोल समय में परिवार से दूर रहने के बजाए एक साथ समय बिताएंगे पर हम इस साथ को बोझ समझते हैं और बाहर के समाज के साथ समय बिताना चाहते है बजाए परिवार के। हमेशा तो काम काजी वर्ग और हमारे विद्यार्थी ये ही दुखड़ा रोते हैं कि परिवार के साथ बैठने का समय नहीं है, और अब समय है तो भी दूर भागने की बेचैनी है।
वाह रे इंसान!
तेरी दुनिया भी तेरी तरह संवेदना हीन हो गई है।
Note: It was written during lockdown period by Ms. Pinki (Intern, Brain Behaviour Research Foundation of India)
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