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महिलाओं की मनोवैज्ञानिक समस्याएं और काउंसिलिंग

भारत में महिलाओं की कई योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया है, जैसे - लिंग समानता, नारीवाद, महिलाओं के अधिकार इत्यादि। फिर भी भारत में आज भी पुरुषों और महिलाओं के बीच एक बड़ी मानसिक खाई है। इसलिए पुरुषों की मानसिक समस्याएं अलग हैं और महिलाओं की मानसिक समस्याएं अलग हैं। महिलाओं की काउंसिलिंग करते समय काउंसलर को विशेष ध्यान रखना पड़ता है। महिलाओं की समस्या वास्तव में कभी खत्म होने वाला विषय है क्योंकि जीवन भर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कई तरह के परिवर्तनों से गुजरना पड़ता है। महिलाओं को आज भी समाज में दुय्यम स्थान दिया जाता है- बस यही परिवर्तन अभी तक नहीं हुआ है। 

 सिमोन बोव्हुआर की पुस्तक ‘द सेकेंड सेक्स’ से उपरोक्त बात स्पष्ट है। पुस्तक की शुरुआत में ही लेखिका ने एक वाक्य लिखा है कि ‘नारी पैदा नहीं होती है बल्कि बनाई जाती हैं’। मतलब इस पुरूषप्रधान समाज में नारी को बहुत सारी थोपी हुई समस्याओं से जूझना पड़ता है।

 इसीलिए महिलाओं की काउंसिलिंग करते समय विशेष ध्यान रखना जरूरी है। इस लेख में हम महिलाओं की कुछ समस्याओं और उनके कारणों पर चर्चा करेंगे- 


  1. जन्मजात अंतर

कई समाजों में, लिंग भेदभाव अभी भी प्रचलित है। जन्म से ही लड़की को नफरत मिलती है। लड़कियों को 'सिर का बोझ' समझा जाता है। कपड़े, भोजन और शिक्षा के मामले में लड़कियां पीछे रहती हैं। हमें इस तरह का व्यवहार क्यों मिलता है,  यह विचार बचपन से ही लड़कियों को परेशान करता रहता है। इसलिए वे लगातार तनाव में रहती हैं। इस तनाव से भावनात्मक असुविधा, भय, चिंता जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

  • काउंसिलिंग

ऐसे समय में पूरे परिवार को काउंसिलिंग देना आवश्यक है। पारिवारिक  काउंसिलिंग (Family Therapy) में केवल लड़की को भावनात्मक समर्थन दिया जाता है, बल्कि उसके माता-पिता की भी काउंसिलिंग कीया जाता हैं। इस तरह माता-पिता लड़की के महत्व के प्रति आश्वस्त होते हैं। अगर लड़कियां नहीं रहेंगी, तो उनके बेटों को शादी करने के लिए लड़कियां नहीं मिलेंगी। यह उचित जानकारी दी जा सकती है  साथ ही लड़की को एक मानव के रूप में देखा जाना चाहिऐ ऐसा उसके माता-पिता  को जागरूक किया जा सकता है।  आज भी कानून लड़कियों को समान अधिकार देता है यह जानकारी दी जा सकती हैं।


  1. किशोरावस्था

किशोरावस्था एक संक्रमणकालीन अवस्था है। इस अवस्था में लड़के और लड़कियों में तेजीसे बदलाव होते हैं। लेकिन लड़कियों में लड़कों से ज्यादा बदलाव होते हैं। शारीरिक बदलाव के साथ मानसिक बदलाव भी होते हैं। लड़कियों को इस अवस्था में ऐसा लगता है कि वे जो चाहती हैं उसे करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस अवस्था में लड़कियों के मन में कई तरह की शंकाएँ, गलतफहमी, गुस्सा, भय, चिंता पैदा हो जाती है। यह वह चरण है जिस पर लड़कियों को मासिक धर्म होता है। यौन उत्तेजना महसूस होने लगती है। लेकिन वे इस यौन प्रेरणा के बारे में नहीं जानते हैं या उन्हें प्रसार के माध्यम से आंशिक जानकारी मिलती है। ऐसे समय में, यदि लड़कियां ठीक जानकारी नहीं जुटा पाती हैं, तो कई समस्याएं पैदा होती हैं। कुछ लड़कियों को तो ये भी लगता है कि  उन्हे प्यार क्या है इसकी पुरी जानकारी पता चल गयी है।  कुछ लड़कियां तो प्यार के लिए घर से भाग जाती हैं। तो कुछ दिल टूटने के कारण अवसाद में चलीं जाती हैं और कुछ तो आत्महत्या भी कर लेती हैं।

  • काउंसिलिंग

 इस समस्या के लिए यथार्थवादी उपचार तकनीकों का उपयोग करते हुए, लड़कियों को जागरूक किया जा सकता है कि प्रेरणा और कामेच्छा दोनों स्वाभाविक हैं। लेकिन इंसान तो संयम और विवेक के उपहार से संपन्न होता है। धैर्य का मतलब यौन भावनाओं को नकारना या दमन करना नहीं है। बल्कि संयम का अर्थ यही है कि अपनी भावनाओं को कब और कैसे व्यक्त करना है यह निश्चित करना चाहिए। इस संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। और सामान्य ज्ञान का उपयोग करने के लिए परामर्श लेना चाहिए।


  1. शैक्षिक समस्याएं

21 वीं सदी में, लड़कियां पहले की तुलना में शिक्षा में अधिक उन्नत हैं। लेकिन आज भी, लड़कियों का  बीच में पढाई छोड देने का  दर अधिक है। आज भी, कई माता-पिता अपने  बेटों को उच्च शिक्षा के लिए भेजने की कोशिश करते हैं, लेकिन लड़कियों को नहीं भेजते क्यों कि उन्हें लगता है उच्च शिक्षा की आवश्यकता लड़कियों को नहीं होती है। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में  इस तरह का भेदभाव किया जाता है की लडकियां यह काम नहीं कर सकती। यह काम सिर्फ़ लडके ही कर सकते हैं। ऐसे समय में लड़कियां भावुक हो जाती हैं और अपना आत्मविश्वास गँवा देती हैं। इससे कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं। 

  • काउंसिलिंग

  ऐसे समय में, लड़कियों की शिक्षा के महत्व के बारे में समझाने के लिए माता-पिता को काउंसिलिंग करनी चाहिए। लड़कियों को स्कूल जाने और उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करना भी महत्वपूर्ण है। लड़कियों को पारंपरिक दृष्टिकोण सिखाया जाता  है जैसे लडकियाँ लडकों से कभी उँचा नहीं उठ सकती, काउंसलर का  यह काम है की लड़कियों के दिमाग से इस दृष्टिकोण को मिटाए। इसी प्रकार, सरकार ने लड़कियों की शिक्षा के लिए कई  योजनाएं बनाई है, यह वैज्ञानिक जानकारी भी हम काउंसिलिंग के माध्यम से दे सकते है।


  1.  शादी

 हमारे समाज में शादी के बाद लड़कियों को ससुराल भेजने की प्रथा है। हर लड़कियों के मायके का माहौल और एक ससुराल के  माहौल में अंतर होता है। शिष्टाचार, मानदंड, परंपराओं जैसे कई पहलुओं में अंतर होता है। ऐसे समय में उसे अपनी ससुराल के  लोगों के साथ तालमेल बिठाते हुए कई तरह के तनाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे मामले में, अगर झगडालू सास, जिद्दी पति, गपशप करने वाली ननद है तो उसे कदम-कदम पर डर, जुल्म, झगड़े और तनाव का सामना करना पड़ता है। इससे उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

  • काउंसिलिंग

 इसके लिए सबसे पहले प्री-मैरिटल काउंसिलिंग की आवश्यकता होती है। लेकिन अगर किसी वजह से प्री-मैरिटल काउंसिलिंग नहीं ली जा सकी तो इसके लिए पोस्ट मैरिटल काउंसिलिंग लेना जरूरी है। पारिवारिक चिकित्सा, युगल चिकित्सा का उपयोग करना होगा। भले ही शादी दो लोगों के बीच हो, लेकिन पूरा परिवार उसमें शामिल होता  है। इसलिए, उपरोक्त समस्या के लिए सभी परिवार के सदस्यों की ग्रुप काउंसिलिंग आवश्यक है। लेकिन अगर ग्रुप काउंसिलिंग में परिवार सभी सदस्य सहमत नहीं हैं, तो काउंसलर को प्रत्येक सदस्य की अलग से काउंसिलिंग करनी होगी और फिर सभी की एक साथ भी काउंसिलिंग करनी होगी। यहां लाभार्थी को  विवाह समायोजन की तकनीक सिखाना भी सहायक हो सकता है।


  1. गर्भावस्था और प्रसूति 

गर्भावस्था के दौरान, गर्भवती महिला को मितली, उल्टी, चक्कर आना, जी मचलना ऐसे शारीरिक लक्षणों के अलावा निराशा, भय, चिंता ऐसी मानसिक समस्या ग्रसित करती है। कुछ महिलाओं को अक्सर गर्भपात, गर्भ में बच्चे का दम घुटना अल्पकालिक जन्म दोष, पैदा होते ही बच्चे की मौत होना जैसे दर्दनाक अनुभवों से गुजरना पड़ता हैं। ऐसे समय में महिलाओं में अवसाद, गंभीर चिंता जैसी समस्याएं निर्मित होती हैं।

  • काउंसिलिंग

ऐसी समस्याओं के लिए, महिला को  काउंसिलिंग देने से पहले उसके पति से परामर्श करना आवश्यक रहता हैं। इस अवस्था में महिला को अपने पति के भावनात्मक सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत होती है यह बात काउंसलर को उस महिला के पति को बताना जरूरी है। साथ ही उस महिला का मनोबल  बढ़ाने के लिए रिश्तेदारों को उसको मानसिक समर्थन देने की भी जरूरत होती है। महिला चिकित्सक की भूमिका भी इसमें महत्वपूर्ण है। चिकित्सक को उस गर्भवती महिला को गर्भावस्था और प्रसव की प्रक्रिया को समझाने और उसका समर्थन करने की आवश्यकता है ताकि सब कुछ ठीक हो जाए। काउंसलर और डॉक्टरों को भी इस स्थिति में महिलाओं को अपने आहार और व्यायाम के महत्व पर ज़ोर देना  चाहिए।


  1.  बांझपन / प्रसव

आज भी अगर किसी दंपत्ति के बच्चे नहीं हैं, तो  महिला  को ही दोषी माना जाता हैं। इसके अलावा, ज्यादातर समय, केवल महिला की ही जांच की जाती है। क्योंकि कई पुरुष यह स्वीकार नहीं करते हैं कि उनमें कुछ दोष हो सकते हैं। कभी-कभी  पुरुष जानता है कि उसके साथ ही कुछ गड़बड़ है, लेकिन वह इसके बारे में किसी को बताना नहीं चाहता हैं। महिला को ही रिश्तेदारों और अन्य लोगों के उपहास का सामना करना पड़ता है। उसे बच्चा नहीं होने के दर्द से जूझना पड़ता है। यह सब बातें उसका मानसिक संतुलन  बिगाड़ देती है।

  • काउंसिलिंग

इस संबंध में, काउंसिलिंग केवल महिला की करनी चाहिये, बल्कि पति और पत्नी दोनों की करनी चाहिये। कभी-कभी पति और पत्नी दोनों को कुछ समस्या नहीं होती है, लेकिन  बच्चा पैदा नहीं होता है तो पति और पत्नी को बच्चे पैदा होने की समस्या के बारे में सोचने के अलावा अपनेआपको खुशनुमा माहौल में रहने के लिए तैयार करना काउंसलर का काम है। बच्चा होने के दर्द में रहने के  बजाय, अपने जिन्दगी मे जो भी करना बाकी रह  गया है वह करना चाहिए- यह बात समझाते हुए काउंसिलिंग की जा सकती है। जब तक कि आपके पास बच्चा हो आप वही चीजें किजिए जिसे आपने करना छोड़ दिया है या तब तक करना चाहते थे। इसके अलावा, यदि आपके पास कोई बच्चा नहीं है, तो आपको टेस्ट ट्यूब बेबी या बच्चा गोद लेने के उपायों की याद दिला  सकते है। और इसकी वैज्ञानिक जानकारी दे सकते हैं।


  1. विधवापन 

अगर एक महिला अपनी युवावस्था में विधवा हो जाती है, तो उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मान लीजिए कि यदि बच्चे के जन्म से पहले वैधता आती है, तो  पुनर्विवाह करके दुबारा जीवन शुरू किया जा सकता है। लेकिन अगर कोई महिला बच्चा होने के बाद, कम उम्र में विधवा हो जाती है, तो उसे विभिन्न व्यावहारिक, सामाजिक और यौन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में, महिला डिप्रेशन और समायोजन की कमी जैसी समस्याओं से  पीड़ित होती है।

  • काउंसिलिंग

ऐसे समय में कोई भी निर्णय जल्दबाजी  किए बिना, शांतिपूर्वक लेने के लिए महिला में अंतर्दृष्टि डालने का प्रयास करें। यह सुनिश्चित करें  कि अन्य लोगों या परिवार द्वारा आर्थिक रूप से धोखा दिया जाए और अपने जीवन को दुबारा शुरू करने क लिए अपनी क्षमता के अनुसार सही रास्ता चुनें।  एक ही समय में यह सब करने के लिए समय लग सकता है । काउंसलर यह बताकर भावनात्मक समर्थन दे सकता है कि हर अच्छे-बुरे स्थिति का सामना करने के लिए कठिन प्रयास करने की आवश्यकता है।


  1. सीज़न रिटायरमेंट / माहवारी

जब मासिक धर्म का कालावधी खत्म होता है, तो उस समय युवावस्था ख़त्म होकर बुढ़ापा शुरू होता है। इस दौरान महिलाओं को कई शारीरिक और मानसिक बदलावों का सामना करना पड़ता है। मासिक धर्म जब खत्म होने लगता है तब  कुछ हार्मोन का स्तर  बढ़ता है तो कुछ हार्मोन का स्तर कम होता हैं उस वजह से डिप्रेशन, उदासी, भय, और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।  कुछ महिलाओं को ऐसा डर लगा रहता है की युवावस्था खत्म होने के  कारण अब उसका पति  उसकी ओर आकर्षित नहीं हो रहा है शारीरिक और मानसिक रूप से कार्य करने की क्षमता कम होने के कारण घुटनों में दर्द, थकान, अपचन, पीठ दर्द जैसी कई समस्याएं होती  हैं। ये संयुक्त समस्याएं जबरदस्त तनाव का स्तर बनाती हैं। और तभी अगर उसके पति या बच्चों ने आलोचना करते हुआ कहा  किइन दिनों इन्हे  क्या हो गया है  तो यह बात  अधिक तीव्र मानसिक परेशानी का कारण बनती है।

  • काउंसिलिंग

इस समस्या के लिए महिला को समायोजन की तकनीक सिखाई जा सकती है। इसके अलावा, जब मासिक धर्म का कालावधी खत्म होने लगता है तब सफलतापूर्वक  उस अवधि का सामना करने के लिए,  आपको आहार और व्यायाम को संतुलित करने की आवश्यकता है ऐसा उस महिला को समझाना चाहिए। 

 इस समस्या के लिए फॅमिली काउंसिलिंग पद्धति का उपयोग करना भी उचित होगा। इसका मतलब यह है कि पति और बच्चों को समझाया जा सकता है कि इस दौरान महिलाओं को भावनात्मक समर्थन की जरूरत है। यह भी संकेत दे सकते हैं  कि इस अवधि में किसी भी महिला को एक योग्य स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा नियमित जांच की आवश्यकता होती है।


  1.  बलात्कार या यौन उत्पीड़न

  कई पुरुष महिलाओं को एक उपभोग की वस्तु के रूप में देखते हैं। एक महिला से छेड़छाड़ करके वे अपनी मर्दानगी साबित करना चाहते हैं। जिन महिलाओं को यौन उत्पीड़न जैसे अनुभव का सामना करना पड़ता है, उन महिलाओं को  अवसाद , क्रोध, चिंता, आक्रोश और घृणा का सामना करना पड़ता है उत्पीड़न गंभीर हो, मतलब यदि बलात्कार होता है, तो ऐसी महिला अपना आत्मविश्वास पूरी तरह से खो देती है। तब समाज भी उसे दोषी मानते हुई  मुक्त हो जाता है। ऐसे मामलों में चिंता, भय, अवसाद जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ महिलाएं आत्महत्या का सहारा  भी लेती हैं।

  • काउंसिलिंग

महिलाओं को इस तरह के डिप्रेशन से बाहर निकलने के लिए विभिन्न उपचार व तकनीकों का उपयोग करना पड़ता है। अगर किसी महिला को अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ना है तो उसे  उसके लिए प्रेरित किया जा सकता है। अपनी सुरक्षा कैसे करें, इस पर कुछ कार्यशालाएँ हैं, उसकी जानकारी भी दी जा सकती है। जो कुछ उनके साथ घटित हुआ है उसमें उनकी कोई गलती नहीं ऐसी अंतर्दृष्टि  देना सम्बल देता है।


  1.  यौन असंतोष

महिलाओं का स्वास्थ्य इस बात पर भी निर्भर करता है कि उनका यौन जीवन संतोषजनक है या नहीं। यहां तक ​​कि वे पुरुष जो कई सालों से शादीशुदा हैं, वे  भी ठीक से नहीं जानते कि जब वे सेक्स करते हैं तो वे क्या चाहते हैं। ज्यादातर पुरुष केवल वही देखते हैं जो वे सेक्स करते समय चाहते हैं। वे इस बात की परवाह किए बिना काम पूरा कर लेते हैं कि उनकी पत्नी सेक्स करने के मूड में है या नहीं। ये सभी चीजें  महिलाओं के दिमाग को प्रभावित कर सकती हैं और उसे एक मनोदैहिक विकार में बदल सकती हैं।

  • काउंसिलिंग

ऐसी समस्याओं के लिए पति और पत्नी  दोनो को एक साथ यौन शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। लेकिन ऐसे मामलों को केवल तभी नियंत्रित किया जाना चाहिए जब काउंसलर के पास यौन मुद्दों से निपटने का विशेष प्रशिक्षण हो अन्यथा ऐसे लाभार्थी को सेक्सोलॉजिस्ट के पास भेजना आवश्यक है।


इस प्रकार महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अलग समस्याएं हैं। इसलिए काउंसलर को महिलाओं की काउंसिलिंग करते समय विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। महिलाओं की काउंसिलिंग करते समय काउंसलरों को कुछ खास उद्देश्यों की आवश्यकता होती है। जैसे कि -

  • महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना।

  • महिलाओं को उनके लिए सुविधाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण आदि के महत्व को समझते हुए उचित जानकारी देना।

  • महिलाओं को  अपनी हीन भावना से बाहर निकालकर आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करना।

  • महिलाओं को निर्णायक और आत्मनिर्भर बनाने में मदद करना।

  • महिलाओं को अन्याय या उत्पीड़न से लड़ने के लिए प्रेरित करना।

  • महिलाओं को उनकी प्रतिभा और योग्यता के अनुसार  सफल होने में मदद करना।

  • महिलाओं को प्रजनन के बारे में उचित जानकारी देना।

  • महिलाओं को उनके सामने आने वाले सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना। जैसे की - बाल विवाह, दहेज प्रथा, सामाजिक अत्याचार, घरेलू हिंसा, बलात्कार आदि।

  • महिलाओं को इस बात से अवगत कराना कि पुरुषों एवं महिलाओं के सोचने और कार्य करने के तरीके में बहुत अंतर होता है।

  • पुरुषों एवं महिलाओं के बीच की शारीरिक और मानसिक अंतर के बारे में महिलाओं को वैज्ञानिक जानकारी देना।


Written by:
Vaishali Dhole
Intern, Brain Behaviour Research Foundation of India


References

Brave, B.N. (2006), Tan Ani Arogya Mansshastra, Vidhya Prakashan, Nagpur.

Bharambe, I. (2016), Stir Manasshastra, Prashant Publication, Jalgoan, ISBN : 978-93-82414-32-2.

Gulavani, M. (2009), Margadarshan Ani Samupdeshan, Nityanutan Prakashan, Pune.

Simon, D. B. & Gokhale, K. (2018), The Second  Sex, Padmagandha Prakashan, Pune.


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